आज हम इंटरनेट का उपयोग मेन रूप से अमेरिकी वेब ब्राउज़र्स जैसे Google Chrome, Safari और Microsoft Edge के माध्यम से करते हैं। Google Chrome का बाजार में 66% हिस्सा है, Safari का 18% और Microsoft Edge का 5% से अधिक। यानी तीन अमेरिकी कंपनियां 89% बाजार पर कब्जा किए हुए हैं। ऐसे में भारत का अपना वेब ब्राउज़र होना क्यों जरूरी है? इसका उत्तर डिजिटल स्वतंत्रता, डेटा सुरक्षा और नागरिक आवश्यकताओं में छिपा है |
India’s Initiative for Web Browser Development
भारत सरकार ने अगस्त 2023 में स्वदेशी वेब ब्राउज़र विकसित करने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस प्रतियोगिता में 430 से अधिक टीमों ने भाग लिया और Zoho Corporation के “ULA ब्राउज़र” ने पहला स्थान प्राप्त किया। इस प्रतियोगिता में विजेता को 1 करोड़ रुपये (लगभग $116,000) की इनाम दिया गया |

Other winning Web Browser:
- ULA Browser – Zoho Corporation (first)
- Ping Browser – (second)
- Bharat Web Navigator – Team Ajna (third)
इन ब्राउज़र्स को अलग अलग प्लेटफार्म्स पर काम करने, सभी भारतीय भाषाओं का हौसला करने और पैरेंटल कंट्रोल जैसी सुविधाएं देने की शर्तों को पूरा करना था |
India: Why does it need its own Web Browser?
- Data Security and Ownership
अभी हाल में, ज्यादातर ग्लोबल डेटा अमेरिका स्थित सर्वरों पर एकत्रित होता है। अमेरिकी सरकार कानूनी शर्तों के तहत इन कंपनियों को किसी भी देश का डेटा साझा करने के लिए मजबूर कर सकती है, जिससे स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। यदि भारत अपना स्वयं का वेब ब्राउज़र विकसित करता है और डेटा को देश के भीतर एकत्रित करता है, तो यह न केवल नागरिकों की प्राइवेसी पक्का करेगा, बल्कि साइबर सुरक्षा को भी मजबूत करेगा |
- Compatibility for Indian languages and users
भारत में सैकड़ों भाषाएं और अलग अलग युजर्स हैं, लेकिन ज्यादातार वेब ब्राउज़र मेन रूप से अंग्रेज़ी और कुछ प्रमुख भारतीय भाषाओं तक सीमित हैं। एक स्वदेशी वेब ब्राउज़र भारतीय भाषाओं का पूर्ण समर्थन कर सकता है, जिससे अधिक लोगों को इंटरनेट तक आसान पहुंच मिलेगी। इसके अलावा, इसे भारतीय युजर्स की बेहतरीन जरूरतों के अनुसार डिज़ाइन किया जा सकता है, जिससे डिजिटल समावेशन को बढ़ावा मिलेगा |

- Digital Sovereignty
अगर भविष्य में भारत और अमेरिका के बीच राजनयिक या व्यापारिक संबंध बिगड़ते हैं और अमेरिका Google को भारत में Chrome जैसी सेवाएं बंद करने के लिए मजबूर करता है, तो भारतीय युजर्स के पास सीमित ऑप्शन रह जाएंगे। ऐसे परिस्थिति से बचने के लिए भारत को अपनी डिजिटल सेवाओं और वेब ब्राउज़र का विकास करना आवश्यक है। इससे देश न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि विदेशी कंपनियों की मनमानी नियमों से भी मुक्त रह सकेगा |
Indian Web Browser: Challenges and the Way Forward
हालांकि, भारतीय Web Browser के लिए मुकाबले आसान नहीं होगी। Google और Apple जैसी कंपनियों के पास सबसे बेहतरीन इंजीनियर, डिज़ाइनर और ब्रांडिंग विशेषज्ञ हैं। उनकी सेवाएं पहले से ही डिवाइसेस में इनबिल्ट होती हैं, जिससे युजर्स को नया ब्राउज़र डाउनलोड करने के लिए प्रेरित करना कठिन हो सकता है |
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चीन ने अपने डिजिटल इकोसिस्टम को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की, लेकिन वहां भी Google Chrome सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला ब्राउज़र बना रहा। ऐसे में भारतीय Web Browser को बेहतरीन यूजर एक्सपीरियंस, सुरक्षा और स्पीड जैसी सुविधाओं पर मेन ध्यान देना होगा ताकि वे Chrome और Safari का प्रभावी ऑप्शन बन सकें |

Conclusion
आज के दौर में डेटा को नया “तेल” कहा जाता है, और टेक कंपनियां आधुनिक “सुपरपावर” हैं। अगर भारत को डिजिटल रूप से आत्मनिर्भर बनना है, तो उसे अपने खुद के Web Browser, ऑपरेटिंग सिस्टम और क्लाउड सेवाओं को विकसित करना होगा। Zoho Corporation का ULA ब्राउज़र इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे सफल बनाने के लिए सरकार और युजर्स को इसे अपनाने के लिए सहयोग करना होगा |